जी-7 देशों ने वन चाइना नीति को दरकिनार किया, गुस्से से लाल हुआ ड्रैगन
ओटावा । जी-7 देशों ने अपने हालिया बयान में वन चाइना नीति के संदर्भ को हटाया है, इससे चीन नाराज हो गया है। चीन ने जी-7 के कदम को अपनी संप्रभुता के लिए खतरा करार देकर अहंकारी और दोहरे मापदंड वाला बताया है। इस बदलाव के चलते दोनों पक्षों के बीच तनाव बढ़ गया है।
जी-7 के विदेश मंत्रियों द्वारा जारी बयान में ताइवान को लेकर चीन की जबरदस्ती की निंदा की गई। रिपोर्ट्स के अनुसार, जी-7 ने अपने बयान से वन चाइना नीति का उल्लेख हटा दिया, जो दशकों से ताइवान मुद्दे पर पश्चिमी देशों की नीति का आधार रही है। विशेषज्ञों का मानना है कि यह बदलाव पश्चिमी देशों की चीन के प्रति कड़े रुख को दिखाता है। जी-7 देशों ने चीन के बढ़ते परमाणु जखीरे को लेकर भी चिंता जाहिर की। हालांकि, इस बार के बयान में शिनजियांग, तिब्बत और हांगकांग में मानवाधिकारों के उल्लंघन का जिक्र नहीं है। पिछले बयानों में चीन के साथ रचनात्मक और स्थिर संबंधों की इच्छा जाहिर की गई थी, लेकिन इस बार यह संदर्भ भी हटा दिया गया।
इस पर चीन ने जी-7 के बयान पर कड़ी प्रतिक्रिया दी है। कनाडा स्थित चीनी दूतावास ने तथ्यों की अनदेखी करने और चीन की संप्रभुता को ठेस पहुंचाने वाला बताया। चीन का कहना है कि ताइवान मुद्दे पर शांति और स्थिरता बनाए रखने के लिए वन चाइना सिद्धांत का पालन होना चाहिए।
जी-7 ने पूर्वी और दक्षिण चीन सागर में चीन के आक्रामक रवैये पर चिंता जाहिर की है। खासतौर पर, फिलीपींस और वियतनाम के खिलाफ चीन की खतरनाक सैन्य कार्रवाइयों और जल तोपों के इस्तेमाल की निंदा की गई।
अमेरिका और जापान का प्रभाव बढ़ा
ताइवान पर जबरदस्ती शब्द के इस्तेमाल को अमेरिका और जापान के बढ़ते प्रभाव के रुप में देखा जा रहा है। हाल ही में जापानी प्रधानमंत्री और अमेरिकी राष्ट्रपति के बीच हुई बैठक में इसी शब्दावली का उपयोग किया गया था। जी-7 देशों का यह रुख चीन के साथ उनके संबंधों को और तनावपूर्ण बना सकता है। शी जिनपिंग और अमेरिकी राष्ट्रपति के बीच संभावित बैठक की चर्चा चल रही है, जिससे आने वाले दिनों में इस मुद्दे पर और स्पष्टता आ सकती है।