देवेंद्र यादव का हमला: जनहित के मुद्दे न उठाकर फोटो विवाद में उलझा सत्र, जनहित की बात क्यों नहीं हुई?
दिल्ली: दिल्ली विधानसभा सत्र का पहला दिन जनता की समस्याओं पर चर्चा के बजाय औपचारिकताओं और फोटो हटाने-लगाने के विवाद की भेंट चढ़ गया. दिल्ली प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष देवेन्द्र यादव ने इसे जनता के साथ अन्याय बताते हुए BJP और आम आदमी पार्टी दोनों पर निशाना साधा है. दिल्ली कांग्रेस अध्यक्ष देवेंद्र यादव ने कहा कि दिल्ली की जनता ने BJP को जिन उम्मीदों के साथ सत्ता सौंपी थी, सरकार ने पहले ही दिन निराश कर दिया. सदन में जनहित के मुद्दों की बजाय मुख्यमंत्री कार्यालय से फोटो हटाने और लगाने को लेकर शोर-शराबा और नारेबाजी होती रही, जिसके चलते सदन की कार्यवाही बाधित रही.
BJP की नीयत पर सवाल
देवेंद्र यादव ने कहा कि 8 फरवरी को चुनाव परिणाम आने के बाद BJP को अपना नेता चुनने में देरी हुई और अब सरकार बनने के बाद भी जनता से किए गए वादों को पूरा करने की दिशा में कोई ठोस घोषणा नहीं की गई. उन्होंने सवाल उठाया कि क्या BJP भी अपनी केंद्र सरकार की तरह ही वादों को जुमला बना देगी?. उन्होंने याद दिलाया कि BJP ने सत्ता में आने के बाद पहली कैबिनेट बैठक में जनता से किए गए वादों को लागू करने की बात कही थी, लेकिन अब तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है.
घोटालों पर भी चुप्पी का आरोप
दिल्ली कांग्रेस अध्यक्ष ने कहा कि AAP सरकार के 11 साल के कार्यकाल में हुए घोटालों और कुशासन से दिल्ली की जनता त्रस्त थी. उम्मीद थी कि BJP सरकार केजरीवाल सरकार के भ्रष्टाचार पर सीएजी की 14 रिपोर्टों को सदन में रखेगी, लेकिन इस मुद्दे पर भी कोई कदम नहीं उठाया गया. उन्होंने पूछा कि क्या दिल्ली में BJP की सरकार भी निष्क्रिय साबित होगी?
महिलाओं की मुफ्त यात्रा पर असमंजस
दिल्ली के परिवहन मंत्री द्वारा महिलाओं को मुफ्त यात्रा की सुविधा जारी रखने के केवल मौखिक बयान को भी यादव ने आड़े हाथों लिया. उन्होंने कहा कि इस संबंध में अब तक कोई आधिकारिक आदेश जारी नहीं किया गया है, जिससे जनता में असमंजस बना हुआ है.
क्या गरीबों और वंचितों को मिलेगा न्याय?
उन्होंने आशंका जताई कि BJP सरकार पूंजीपतियों की हितैषी बनकर गरीबों, वंचितों, दलितों, अल्पसंख्यकों, झुग्गी-झोपड़ी में रहने वालों, मजदूरों और रेहड़ी-पटरी वालों को नजरअंदाज कर सकती है. उन्होंने कहा कि BJP की प्रदेश सरकार का रिकॉर्ड बताता है कि चुनावी वादे पूरे नहीं किए जाते, जबकि कांग्रेस की सरकार अपने पहले कैबिनेट बैठक में ही योजनाओं को लागू करने के फैसले लेती है.